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भाग्य का खेल ( भाग 1)

 अचानक गाडी़ मे इतने तेज ब्रैक लगे कि  सभी यात्रियौ की नींद भाग गयी और वह किसी अनहौनी  की खबर की प्रतीक्षा करने लगे जैसे कि कोई आकर बतायेगा कि गाडीँ  इस घटना के कारण रोकी गयी है।


         सभी यात्री एक दूसरे के चहरे की तरफ देख रहे थे कि कोई तो बतायेगा कि गाडी़ अचानक  क्यौ  रोकी गयी।

       अनामिका भी उनमे से एक चेहरा था जो यह जानने के लिए बेताब था कि गाडी़ इस तरह यकायक क्यौ रोकी गयी है

      कुछ समय पश्चात मालूम हुआ कि यहाँ से कुछ दूरी पर आतंकवादियौ द्वारा पटरी उखाड़ दी गयी है जिसकी सूचना किसी औरत ने पास के स्टेशन पर दी थी और उसी समय वहाँ के स्टेशन इन्चार्ज ने उधर से गुजरने वाली गाडिँयौ को तुरन्त रोकने की कार्यवाही की थी।

     अनामिका को इस गाडी़ से भोपाल अपनी सहेली के पास पहुँचना था। अनामिका अपने घरवालौ से झूंठ बोलकर आई थी कि वह सूरत अपनी सहेली की शादी में जारही है।

     कुछ समय बाद सूचना आई कि पास के स्टेशन से अब दूसरी ट्रैन का इन्तजाम किया जारहा है अतः सभी यात्री अपना सामान लेकर स्टेशन पर पहुँच जाय।

     अनामिका ने अनमने मन से अपना बैग उठाया और बड़बडा़ने लगी यह सब आज ही होना था। वह धीरे धीरे चलकर पास के स्टेशन के बाहर एक चाय की टपरी पर चाय पीने की इच्छा से वहाँ पडीँहुई कुर्सी पर बैठ गयी।

     अनामिका वहाँ बैठकर लम्बी लम्बी साँसें लेने लगी। और उसने अपने बैग से पानी बोतल निकाली लेकिन बोतल तो खाली थी। अब उसने वहा रखे हुए जग में से ही पानी पीकर चैन की सांस ली और चाय वाले अंकल को एक चाय बनाने को कहकर पास रखे लोकल अखवार को पढ़ने लगी।

            अखबार पढ़ते हुए उसकी नजर एक आवश्यकता है के विज्ञापन पर रुक गयी। उस विज्ञापन मे एक अध्यापिका की आवश्यकता थी जो चौवीस घन्टे स्कूल में ही रह सके क्यौ कि उस स्कूल मे एक छोटे बच्चौ का होस्टल भी था।

      अनामिका सोचने लगी यदि यह नौकरी उसे मिलजाय तो बहुत अच्ता हो जायेगा क्यौकि उसे अपने रहने के लिए भी एक सुरक्षित स्थान मिलजायेगा।

        वह सोचरही थी कि शायद यह विज्ञापन  उसीके लिए ही बना हो इसीलिए यहाँ गाडी़ रुकी हो यह सब एक संयोग ही नजर आरहा है।

     अनामिका पुनः सोचने लगी उसकी किस्मत इतनी अच्छी कहाँ है । यदि उसकी किस्मत इतनी अच्छी होती तब उसकी  माँ ही बचपन में क्यौ भगवान को प्यारी हो जाती। माँ के जाने के बाद उस पर आपत्तियौ का पहाड़ टूट पडा़ था।

    अनामिका ने चाय वाले अंकल  से पूछा," अंकलजी यहाँ जनता हाई स्कूल कहाँ पर है ?"

दुकानदार ने उत्तर देते हुए कहा ," बेटी वह यहाँ से एक किलोमीटर की दूरी पर है। क्या आपको वहाँ जाना है?"

 अनामिका ने जबाब दिया," जी"

 दुकानदार बोला,"  उस स्कूल के मैनेजर अभी मेरी दुकान पर आयेगें कहोतो बात करवा दूँगा।"

अनामिका न चाहते हुऐ भी हाँ करती जारही थी।अब ़। सोचने लगी कि यहाँ भी एक बार बात करने में क्या जाता है। और वह वहाँ बैठी चाय की चुस्कियाँ लेने लगी।

       लगभग आधा घन्टे बाद एक सज्जन वहाँ आये । उनका रंग गोरा था  सिर के बाल सफैद थे। उनकी उम्र ़ लगभग  पचपन के आसपास लग रही थी।

      चाय वाले दुकानदार ने अनामिका को इशारा करके समझाया कि  यही है स्कूल के मैनेजर  मि.राघव सक्सैना।

    अनामिका ने उनका नमस्कार कहकर  अभिवादन किया और उस विज्ञापन की चर्चा करते हुए अपना परिचय दिया।एवं अपनी योग्यता के बिषय में विस्तार से बताया।

    सक्सैना जी बोले  ," कोई बात नही बेटा आप आठ बजे आफिस में आकर मिलो।   मै वहीं पर रहूँगा ।

       अब अनामिका का दिल कह रहा था कि यह नौकरी उसे अवश्य मिल सकती है। अनामिका को उनकी बातौ से कुछ उम्मीद की किरण नजर आरही थी। क्यौकि वह कह रहे थे कि अभी तक उनके पास कोई एप्लीकन नही आई है क्यौकि कोई भी लड़की अकेली रात को रुकने को तैयार नही थी।

                         धन्यवाद।
नोट आगे की कहानी भाग  2 में पढें।

       #  नान स्टाँप 2022   के लिए लिखी गयी कहानी भाग १

    नरेश शर्मा " पचौरी"



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9 Comments

shweta soni

21-Jul-2022 10:48 PM

👍

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Punam verma

25-May-2022 09:19 PM

Nice

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Shrishti pandey

24-May-2022 10:31 AM

Nice

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